भारत पाक बंटवारा || कैसे हुआ था दोनों देशों के बीच चल अचल संपत्ति का बंटवारा || बल्ब पेंसिल तक का हुआ था बंटवारा
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भारत पाक बंटवारा || कैसे हुआ था दोनों देशों के बीच चल अचल संपत्ति का बंटवारा || बल्ब पेंसिल तक का हुआ था बंटवारा |
Lucknow News || 'विभाजन की विभीषिका' इन दिनों पूरे देश में चर्चा का केंद्र है। लगभग सभी नगरों में इस 'विभीषिका' पर आधारित सेमिनार, नाट्य प्रस्तुतियां और अन्य विचार गोष्ठियां हो रही हैं। इस अवसर पर यह जानना अत्यंत दिलचस्प है कि इन्हीं दिनों 79 वर्ष पूर्व क्या-क्या घटा? 14 अगस्त 1947 को विभाजन के बाद नया देश पाकिस्तान बना था। जब धर्म के नाम पर देश के टुकड़े हुए तो सबसे मुश्किल काम था चल-अचल संपत्तियों का बंटवारा। विभाजन के दौरान दोनों देशों के बीच सैनिक व सैन्य संपत्तियां, खजाना, शाही वाहन, कार्यालय फर्नीचर, स्टेशनरी आइटम यहां तक कि बल्ब और पेन-पेंसिल तक का भी बंटवारा हुआ था।
देश इस वर्ष 79वां स्वतंत्रता दिवस का जश्न पा मना रहा है। इस तारीख से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 के धर्म के नाम पर देश के टुकड़े हुए तो सबसे मुश्किल काम था के विभिन्न संपत्तियों का बंटवारा। यह बंटवारा कहीं-कहीं हास्यास्पद भी हो गया था। फौज, खजाना, बग्घी और हाथी को कैसे बांटा गया? जॉयमनी नाम की हथिनी को लेकर क्यों विवाद हुआ था। अंग्रेजों का जाना और भारत-पाकिस्तान का विभाजन होना तय हो गया था। तब एक ब्रिटिश वकील सर सिरिल रैडक्लिफ को नई सरहद तय करने का काम दिया गया। इसी के साथ भौगोलिक विभाजन पूरा हो गया। अब सवाल यह था कि फौज, खजाना और सांस्कृतिक वस्तुओं का बंटवारा कैसे किया जाए। 16 जून 1947 को पंजाब विभाजन समिति का गठन किया गया।
इसका काम था- वित्त, सेना और वरिष्ठ प्रशासनिक सेवाओं के विभाजन के साथ ही उनके कार्यालय और उपकरणों का बंटवारा। हालांकि, बाद में इस समिति का नाम विभाजन परिषद कर दिया गया था जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद और मुहम्मद अली जिन्ना भी शामिल थे। 14 अगस्त 1947 को पुरानी भारतीय सेना को न बांटने का आदेश आ गया। ब्रिटिश भारतीय सेना का यह आखिरी आदेश था। सैनिकों से कहा गया कि वह अपनी मर्जी से भारत या नए बने राष्ट्र पाकिस्तान को चुन सकते हैं। इसमें कभी एक शर्त रखी गई थी। एचएम पटेल की किताब 'राइट्स ऑफ पैसेज' के मुताबिक, शर्त यह थी कि पाकिस्तान का कोई का भी मुस्लिम भारतीय राय में और भारत का कोई गैर-मुस्लिम न पाकिस्तान के सशस्त्र बलों में शामिल नहीं हो सकता।
ब्रिटेन के नेशनल आर्मी म्यूजियम की रिपोर्ट के मुताबिक, विभाजन के बाद दो तिहाई जवान भारत को मिले और एक तिहाई हीं पाकिस्तान चले गए। इस तरह 260000 जवानों ने भारतीय को सेना और करीब 140000 ने पाकिस्तान को चुना था।पाकिस्तान को चुनने वालों में ज्यादातर मुस्लिम थे। इस रिपोर्ट के अनुसार, 98 फीसदी मुस्लिम सैनिकों ने मुल्क के तौर पर पाकिस्तान को चुना था जबकि सिर्फ 554 मुस्लिम अधिकारियों ने ही भारत में रहने का फैसला किया था। विभाजन से भारतीय सेना में करीब 36 फीसदी मुसलमान थे, जो घटकर 2 फीसदी रह गए। इनमें ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान, ब्रिगेडियर मुहम्मद अनीस अहमद खान और लेफ्टिनेंट कर्नल इनायत हबीबुल्लाह जैसे कुछ अधिकारी भी शामिल थे, जिन्होंने भारत को अपना वतन चुना था।
प्रोफेसर वजीरा जमींदार की किताब 'द लॉन्ग पार्टिशन एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न साउथ एशिया' है। लखनऊ के एक सैनिक गुलाम अली कृत्रिम अंग बनाते थे। विभाजन के वक्त वह पाकिस्तान की मिलिट्री वर्कशॉप में थे। उनको लखनऊ वापस जाने से मना कर दिया और पाकिस्तान की सेना में शामिल कर लिया गया था। पाकिस्तानी सेना ने 1950 में गुलाम अली को यह कहकर निकाल दिया कि तुम भारत के नागरिक हो। जब वह भारत लौटे तो उन्हें पाकिस्तानी सैनिक मानकर बिना परमिट के सीमा पार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। 1951 में अली को जेल से रिहा कर पाकिस्तान भेज दिया। अली ने छह साल तक दोनों देशों की जेल और रिफ्यूजी कैंपों में काटे। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान में एक मुसलमान सैनिक माना गया और इस आरोप में जेल भेज दिया गया कि वह हिंदू कैदियों के कैंप में रह रहा था।
सेना के बंटवारे के बाद दूसरी बड़ी चुनौती यह थी कि धन का बंटवारा कैसे किया जाए। विभाजन परिषद ने तय किया था कि एक ही केंद्रीय बैंक एक साल तक दोनों देशों में सेवाएं संचालित करेगा। 31 मार्च, 1948 तक दोनों देश मौजूदा सिक्के और मुद्रा को जारी रखेंगे। 1 अप्रैल से 30 सितंबर, 1948 के बीच पाकिस्तान नई मुद्रा पेश करेगा लेकिन - पुरानी करेंसी भी वैध रहेगी। वैसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नोट पाकिस्तान सरकार की मुहर के साथ वहां सालों-साल चलते रहे। दस्तावेज बताते हैं कि बंटवारे में पाकिस्तान को कुल 75 करोड़ रुपये दिए गए थे। भारत ने समझौते के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये दे दिए।
बंटवारा होते ही पाकिस्तान की ओर से कबायलियों के भेष में आए सैनिकों ने कश्मीर में हमला किया। इससे नाखुश भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल या ने दो-टूक कह दिया था कि कश्मीर पर प्रस्ताव के बिना पाकिस्तान को कोई भुगतान नहीं होगा। महात्मा गांधी तब इससे कर नाराज हो गए। उनका कहना था, समझौते के मुताबिक पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपये और दिए जाएं। इसके लिए वह अनशन पर बैठ गए। ऐसे में पटेल की आपत्तियों के बावजूद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को मजबूरन 15 जनवरी 1948 को पाकिस्तान को 55 करोड रुपये देने पड़े थे। है।
मजेदार बात यह है कि दोनों देश दावा करते हैं कि आज भी या एक-दूसरे पर उनका पैसा बकाया है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 से पता चलता है कि पाकिस्तान पर भारत का 300 करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं, 2014 में पाकिस्तान के स्टेट बैंक ने कहा था कि भारत पर उसका 560 करोड़ रुपये बकाया है। विभाजन के दौरान दोनों देशों में चल-अचल संपत्तियों को लेकर खूब हंगामा हुआ था लेकिन सबसे ज्यादा खींचतान वायसराय की घोड़ागाड़ी एवं बग्घी के लिए हुई थी।
पुस्तक फीडम ऐट मिडनाइट के मुताबिक, वायसराय के पास हाथ से गढ़ी सोने और चांदी से बनी 12 बग्घी थीं। इनमें से छह बग्घी सोने और छह चांदी की थीं। जिन पर शानदार को सजावट थी और लाल मखमली गद्दियां लगी थीं। भारत के वायसराय और शाही मेहमानों को इनमें बिठाकर राजधानी में घुमाया जाता था। समस्या ये थी कि बग्घियों के सैट को तोड़ना ठीक नहीं था। ऐसे में तय किया गया कि एक को वायसराय की सोने की और दूसरे देश को चांदी की बग्घी दे दी जाए। दोनों देश सोने की बग्घी लेने पर अड़े रहे। कई दिनों तक बहसबाजी हुई लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया। फिर तय हुआ कि सिक्का उछाल कर फैसला कर लिया जाए। तब वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के एडीसी लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने अपनी जेब से चांदी का सिक्का निकाला और हवा में उछाल दिया।
इस दौरान पाकिस्तानी सेना के उस वक्त नए-नए नियुक्त हुए कमांडर मेजर याकूब खां और भारतीय सेना के कमांडर मेजर गोविंद सिंह भी खड़े थे। विभाजन से पहले दोनों वायसराय के बॉडीगार्ड थे। सिक्का खनकता हुआ गिरा तो तीनों देखने लगे तभी मेजर गोविंद सिंह खुशी से चिल्ला उठे, सोने की बग्घियां भारत की हुई। अन्वेषा सेनगुप्ता के शोध पत्र 'ब्रेकिंग अप डिवाइडिंग एसेट्स बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान इन टाइम्स ऑफ पार्टीशन' के मुताबिक, संपत्ति के बंटवारे के दौरान बंगाल के वन विभाग के स्वामित्व वाले एक हाथी जॉयमनी को लेकर भी रस्साकसी हुई थी। दरअसल, उस वक्त हाथी जॉयमनी की कीमत एक स्टेशन वैगन (लग्जरी कार) के बराबर थी। तय हुआ था कि पश्चिम बंगाल को वाहन मिलेगा और पूर्वी बंगाल को जॉयमनी। विभाजन के वक्त जॉयमनी पश्चिम बंगाल के मालदा में थी। जॉयमनी को पूर्वी बंगाल भेजने के खर्च को लेकर मालदा के कलेक्टर ने कहा कि पूर्वी बंगाल सरकार को हाथी का भुगतान करना चाहिए क्योंकि यह उनके हिस्से में आई है।
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