जानिए, वास्तुशास्त्र की आठ प्रमुख दिशाएं और क्या है उनका महत्व, कैसे जीवन को करती हैं प्रभावित
बस्ती। भारत में वास्तुशास्त्र का महत्व प्राचीन काल से समाज में विद्यमान रहा है। इसका महत्व ज्ञानी से लेकर हर आम नागरिक जानता और समझता था। इसका प्रमाण घरों के निर्माण से लेकर मंदिर आदि तक में बखूबी होता था। दिशाओं का ज्ञान और उसके अनुसार अपनी जीवनशैली को गढ़ने की परिकल्पना आज भी चली आ रही है। बस उस पर आधुनिकता का कलेवर और बाजार का तड़का लग गया है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार दिशाओं की संख्या आठ बताई जाती है, जो हमारे जीवन को प्रभावित करती है। हर दिशा का अपना अलग और विशेष महत्व है। इसके साथ ही यह हमारे जीवन पर सकारात्मक असर भी डालते हैं। इसीलिए घर या ऑफिस के निर्माण में इसका खास ख्याल रखा जाता है। वैसे तो ब्रम्हांड अनंत है। यहां कोई दिशा नहीं है। लेकिन, जब हम पृथ्वी की बात करते हैं तो दिशाओं का महत्व जीवन के हर पहलू में नजर आने लगता है। यह दिशाएं पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति और सूर्य को आधार बनाकर तय होती हैं। आज इसी का जिक्र करते हैं। इस लेख में आपको बताएंगे कि शास्त्रों में जिन आठ मूल दिशाओं का वर्णन किया गया है उनके प्रतिनिधि देव कौन हैं और उनका क्या महत्व है। उसके वैज्ञानिक आधार की भी चर्चा करेंगे।
पूर्व दिशा
पूर्व दिशा का शास्त्रों में बड़ा महत्व बताया गया है। इसके प्रतिनिधि देवता सूर्य हैं, क्योंकि इस दिशा से ही भगवान भाष्कर का उदय होता है। यह शुभ कार्य के आरंभ की दिशा है। भवन के मुख्य द्वार को इसी दिशा में रखने को श्रेष्ठ माना जाता है। इससे एक तो सूर्य को आदर देना है तो दूसरा सूर्य की रोशनी सुबह मुख्य द्वार पर पड़ती है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से भी उत्तम माना जाता है। इससे घर और उसमें रहने वाले लोग ऊर्जावान बने रहते हैं।
उत्तर दिशा
धन के देवता कुबेर उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ध्रुव तारे से इस दिशा की रात के समय पहचान की जा सकती है। यह स्थायित्व का प्रतीक है। इस दिशा को आर्थिक गतिविधियों के लिए श्रेयस्कर माना जाता है। इस दिशा में भी घर का प्रवेश द्वार उत्तम होता है। लिविंग रूम और बैठका यानी ड्राइंग रूम इसी दिशा में बनाने की सलाह दी जाती है। भारत उत्तरी अक्षांश पर स्थित है। इसलिए भाग को खुला रखने की सलाह दी जाती है। ताकि प्रकाश और हवा का प्रवाह बना रहता है।
उत्तर-पूर्व (ईशान कोण)
यह सबसे उत्तम दिशा मानी जाती है। उत्तर व पूर्व दिशा के संगम पर ईशान कोण बनता है। इस जगह कूड़े का ढेर या शौचालय का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। ईशान कोण में जलस्रोत की स्थापना की जा सकती है। इस कोण में सूर्य की रोशनी सबसे अधिक समय तक रहती है।
पश्चिम दिशा
पश्चिम में सूर्यास्त होता है। इस दिशा के प्रतिनिधि जल देवता वरुण हैं। इस दिशा में शौचालय, बाथरूम, सीढ़ी या स्टोर रूम का निर्माण किया जा सकता है। इस ओर पेड़-पौधे लगाए जा सकते हैं या बागवानी की जा सकती है।
उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण)
उत्तर-पश्चिम दिशा के प्रतिनिधि वायु देवता हैं। दिशा में शाम के समय तेज धूप या रोशनी पड़ती है। इस तरफ स्टोर रूम, बाथरूम या शौचालय का निर्माण सही बताया गया है। इसके चलते घर के अन्य हिस्से सूर्य की तपती रोशनी से बचे रहते हैं।
दक्षिण दिशा
मृत्यु के देवता यमराज इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस दिशा का संबंध पितरों से भी है। इस दिशा में ड्राइंग रूम या बच्चों के लिए शयन कक्ष बनाया जा सकता है। इस दिशा को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। इसलिए इस दिशा में शयन कक्ष उत्तम माना गया है
दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण)
यह धन की देवी लक्ष्मी की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में आलमारी, तिजोरी या गृहस्वामी का शयन कक्ष बनाना चाहिए। यह दिशा हवा प्रवाह की दृष्टि से बेहतर होती है।
दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण)
अग्निदेव इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां रसोईघर का निर्माण उत्तम माना गया है। इसे जीवनशक्ति और ऊर्जा की दिशा भी कहते हैं।
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