Munawwar Rana: घेर लेने को जब भी बलाएं आ गईं, ढाल बनकर मां की दुआएं आ गईं
Munawwar Rana Maa Shayari: मां के प्यार को लफ्जों के जरिए बयां कर मुनव्वर (रोशन या प्रकाशमान) हुए सैयद मुनव्वर राना ने इस दुनिया-जहां से विदा ले लिया। लेकिन, उनकी शेरो-शायरी उन्हें अनंत काल तक उनकी याद में हम सबकी आंखें नम करती रहेगी। उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्मे मुनव्वर राना अपनी मां को बहुत प्यार करते थे, जिसे जब उन्होंने शब्द दिए तो वह साहित्य जगत में इस कदर मुनव्वर हो गए कि उनके बिना कवि सम्मेलन की कोई भी महफ़िल अधूरी लगने लगी थी। अब इस अधूरेपन को उनकी कलम से निकले अल्फाज पूरा करेंगे। Munawar Rana's Famous Shayari About Maa
मां पर लिखी शेरो-शायरी नम कर देती हैं आंखें
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है
यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया
माँ के आँखें मूँदते ही घर अकेला हो गया
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे 'राना'
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की 'राना'
माँ की ममता मुझे बाँहों में छुपा लेती है
गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माँएँ रोज़ आती हैं
ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
जो महसूस किया उसे अल्फाज देने में नहीं सकुचाए
मशहूर शायर मुनव्वर राना ने अपने जीवन में जो कुछ महसूस किया, उसे अल्फाज देने में कभी नहीं सकुचाए। फिर वह शासन-सत्ता के प्रतिकूल ही क्यों न हो। एक समय ऐसा भी आया कि उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया। किसान आंदोलन के हक में शायरी लिखी। जो कुछ इस तरह है...
इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी,
संसद को गिरा कर वहां कुछ खेत बना दो…
अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुक़द्दर,
सेठों के बनाये हुए गोदाम जला दो…
मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूं,
गर्दन को उड़ाओ, मुझे या ज़िंदा जला दो
रायबरेली में जन्म कोलकाता में शिक्षा
सैयद मुनव्वर अली उनका बचपन का नाम था। वह उत्तर प्रदेश के रायबरेली में एक नवंबर 1952 को जन्मे। इंटर तक पढ़ाई रायबरेली में हुई। इसके बाद की तालीम कोलकाता में। इस दौरान वह मौलाना आज़ाद कॉलेज में उर्दू, अरबी और फारसी के विभागाध्यक्ष व मशहूर शायर अब्बास अली बेख़ुद के संपर्क में आए। नज्मों-गजलों में राना की दिलचस्पी उनकी वजह से हुई। मुनव्वर राना अपनी नज्मों-गजलों में सहज हिंदी-उर्दू अल्फाज इस्तेमाल करते रहे। वह उर्दू के अलावा हिंदी और अवधी भाषाओं में भी लिखते थे। मुनव्वर अपनी मां से बहुत प्रेम करते थे और इस बात ने मुनव्वर को खास पहचान दी। मुनव्वर राना जब लखनऊ आए, इस शहर के मुरीद हो गए। उस वक्त के मशहूर शायर वली आसी से लखनऊ में मुलाकात हुई। वह उनके शागिर्द बन गए और शायरी की बारीकियां सीखने लगे। वली आसी को अपना साहित्यिक गुरु मानते रहे।
मुनव्वर राना की मशहूर रचनाएं
मुनव्वर राना ने कई किताबें भी लिखीं। जिसमें नए मौसम के फूल, कहो ज़िल्ले इलाही से, मां, बग़ैर नक़्शे का मकान, फिर कबीर, पीपल छाँव, बदन सराय, ग़ज़ल गाँव, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया।
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