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खुशखबरी || योगी सरकार ने बुंदेलखंड के 7 जिलों को दी प्राकृतिक खेती की सौगात || प्रदेश के 49 जिलों में जल्द प्राकृतिक खेती की हो जाएगी शुरूआत || जानें क्या है प्राकृतिक खेती और क्या हैं इसके लाभ

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खुशखबरी || योगी सरकार ने बुंदेलखंड के 7 जिलों को दी प्राकृतिक खेती की सौगात || प्रदेश के 49 जिलों में जल्द प्राकृतिक खेती की हो जाएगी शुरूआत || जानें क्या है प्राकृतिक खेती और क्या हैं इसके लाभ

National Mission on Natural Farming || अगर हमें कीटनाशकों के जहर से बचना है। तो प्राकृतिक खेती ही एकमात्र विकल्प है। एक तो इसमें लागत कम आती है और प्राकृतिक तरीके से पैदा होने वाला अनाज सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार की ओर से पोषित नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के 49 जिलों की 85,710 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर प्राकृतिक खेती किए जाने की व्यवस्था की है। इस योजना के तहत भारत सरकार ने स्वीकृति सहित धनराशि भी आवंटित कर दिया है। इसके तहत राज्य सेक्टर से बुंदेलखंड के सभी जिलों में 23,500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गौ आधारित प्राकृतिक खेती का कार्यक्रम चलाने का कार्य शुरू भी कर दिया गया है।

बुंदेलखंड के 7 जिलों के 47 विकास खंडों में शुरू हुई योजना

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में गौ आधारित प्राकृतिक कृषि के लिए बुंदेलखंड के सात जिलों को चुना गया है। इन 7 जिलों के 47 विकास खंडों में योजना शुरू भी कर दी गई है। बताया जा रहा है कि प्रत्येक विकास खंड में 500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में चरणवार तरीके से प्राकृतिक खेती को विकसित किया जाएगा। पहले चरण में वर्ष 2022-23 से लेकर 2025-26 में 23,500 हेक्टेयर, जबकि द्वितीय चरण में वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक में कुल 2350 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर प्राकृतिक खेती का लक्ष्य तय किया गया है। हर क्लस्टर में 50 हेक्टेयर क्षेत्रफल को शामिल किया जाएगा। जिला स्तर पर सभी कृषि कर्मचारी, कृषि वैज्ञानिक और प्राकृतिक खेती से जुड़े किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन के रूप में जरूरी सहयोग भी दिया जा रहा है।

गंगा किनारे 92190 हेक्टेयर में हो रही प्राकृतिक खेती

नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग के तहत गंगा तट क्षेत्र के 1038 ग्राम पंचायत में व्यापक रूप से प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों को जागरूक किया गया है। इसमें 27 जिलों के 21 नगर निकाय और 1038 ग्राम पंचायत के साथ 1648 राजस्व गांव में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि गंगा के दोनों ओर के तटवर्ती क्षेत्र और नमामि गंगे परियोजना के तहत व्यापक स्तर पर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसके तहत गंगा के तटीय क्षेत्र के कुल 4909 कलस्टरों के 92,180 हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती आरंभ भी कर दी गई है। बताया यह भी जा रहा है कि पहले चरण में 1038 ग्राम पंचायत में मास्टर ट्रेनर भी तैनात कर दिए गए हैं। यह मास्टर ट्रेनर गांव में जाकर किसानों को गौ आधारित खेती का प्रशिक्षण भी व्यापक स्तर पर दे रहे हैं।

प्राकृतिक खेती का दिया जा रहा प्रशिक्षण

गंगा के तटीय क्षेत्र में गंगा मैदान, गंगा वन, गंगा उद्यान के साथ-साथ गंगा तालाब को भी विकसित किया जाएगा। जो आने वाले समय में प्राकृतिक खेती के लिए काफी मददगार साबित होंगे। इन क्षेत्रों में कृषि विज्ञान केंद्र और यूनिवर्सिटियों की मदद से किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण भी दिलाया जा रहा है। ताकि अधिक से अधिक किसान प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हों। योगी सरकार का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती का क्षेत्रफल बढ़ाना है। इसके साथ प्राकृतिक खेती से उत्पन्न हुए उत्पादों को उचित मूल्य दिलाने के लिए भी सरकार व्यापक स्तर पर काम कर रही है।

क्यों जरूरी है प्राकृतिक खेती

मौजूदा समय में हो रही खेती में तमाम तरह के रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी की आवश्यकता सबसे अधिक होती है। वहीं, लंबे समय तक रासायनिक खाद की उपयोग से उपजाऊ कृषि योग्य भूमि बंजर होने लगती है और इसका असर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन पर भी पड़ता है। इसके साथ रासायनिक खाद से उत्पन्न हुए अनाज से मनुष्य के अंदर भी धीरे-धीरे कीटनाशक का जहर पहुंचता रहता है। इससे लोग कई तरह की बीमारियों के शिकार होने लगते हैं। ऐसे में अगर स्वस्थ जीवन पाना है, तो प्राकृतिक खेती को अपनाना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इसीलिए भारत सरकार की ओर से नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग की शुरुआत की गई है।

क्या होती है प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। इसके तहत किसानों की आर्थिक सेहत में सुधार होने के साथ नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग के तहत कई और कदम उठाने का की घोषणा की गई है। जिसमें जीरो बजट खेती सबसे मुख्य बिंदु है। जीरो फार्मिंग के माध्यम से कृषि के पारंपरिक और आधारभूत तरीकों पर लौटने पर बल दिया जा रहा है। इसके तहत किसान जिस भी फसल का उत्पादन करेंगे, उसमें रासायनिक खाद या कीटनाशक के स्थान पर प्राकृतिक खेती में शामिल तरीकों को अपनाएंगे। बताया जा रहा है कि इसमें रासायनिक खाद की जगह पर खरपतवार से बनी देसी खाद और गोबर, गोमूत्र चने के बेसन, मिट्टी व गुड़ से बनी खाद आदि का इस्तेमाल किया जाता है।

कृषि आधारित है यूपी की बड़ी आबादी

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। और खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश की ज्यादातर आबादी की आजीविका का आधार कृषि ही है। ऐसे में जाहिर है कि कृषि के क्षेत्र से सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर भी प्राप्त होते हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से इसीलिए कृषि के विकास और किसानों की खुशहाली के लिए लगातार प्रयास किया जा रहे हैं। इसी के तहत उत्तर प्रदेश में किसानों के हित को लेकर तमाम योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। जिनका उद्देश्य किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है। साथ ही गोवंश आधारित जीरो बजट की प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना है।

किसानों की आय दोगुना करने का सबसे सरल माध्यम

प्राकृतिक खेती में कम लागत में अधिक पैदावार कर किसानों अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकें। यहां यह भी बता दें कि जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती किसानों की आय दोगुनी करने का सबसे सरल माध्यम है। वहीं, प्रदेश में निराश्रित गोवंश आश्रय स्थलों को भी गौ आधारित प्राकृतिक खेती व अन्य तमाम तरह के उत्पादों के निर्माण के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। यह बुंदेलखंड में जीरो बजट की खेती की दिशा में बड़ा कदम होगा। वहीं, इससे प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल किया जा रहा है।

बुंदेलखंड के लिए प्राकृतिक खेती किसी वरदान से कम नहीं

अब तक आप समझ गए होंगे कि प्राकृतिक खेती के लिए मुख्य आधार देसी गाय है। देसी गाय के गोबर, गोमूत्र और अन्य उत्पादों को मिलाकर बनाए जाने वाले जीवामृत और घन जीवामृत में कृषि योग्य भूमि को और उपजाऊ बनाने और फसल को उत्तम पोषण देने की बाकायदा खूब क्षमता होती है। इसके तहत निराश्रित गायों के पालन पोषण के लिए भी गो पालकों को प्रतिमाह करीब 1500 रुपये की सहायता राशि दी जा रही है। इससे देसी गायों के पालन और उनके गोबर से प्रयोग से खेती को और बेहतर किया जा सकता है। इसमें पानी की मात्रा को काफी हद तक बचाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में सूखे का प्रकोप झेलने वाले बुंदेलखंड के क्षेत्र में प्राकृतिक खेती किसी वरदान से कम नहीं होगी।

प्राकृतिक खेती का उद्देश्य कम खर्च में अधिक पैदावार

प्राकृतिक खेती का मुख्य उद्देश्य कम लागत में अधिक पैदावार करना है। इसके साथ ही किसानों को महंगे बीज खरीदने रासायनिक उर्वरक पर अपव्यय करने से भी बचाना है। इसके तहत किसान प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर खेती में आत्मनिर्भर हो सकते हैं। खेती में कम लागत लगने से कृषि कार्य करने वाले किसान को धीरे-धीरे अधिक मुनाफा भी मिलने लगेगा। यह सोने पर सुहाग वाली बात होगी। प्राकृतिक खेती से जो भी फसल पैदा की जाती है। वह स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक मानी जाती है। इसके पीछे वजह यह है कि इसके उत्पादन में किसी भी तरह के रासायनिक खाद या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हीं विशेषताओं के चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दे रहे हैं।

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