धर्म डेस्क। Hal shashthi Vrat 2023 इस बार छह सितंबर को पड़ रही है। इस व्रत को पुत्रवती महिलाएं प्रमुख रूप से रखती हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार विशेष कर पूर्वांचल में इस व्रत को रखने की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। इस व्रत को रखने के नियम बेहद कड़े हैं और जो महिलाएं इस व्रत को रखती हैं वह इसका बड़े ही मनोयोग से पालन करती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत के महत्व, मुहूर्त और नियम को विस्तार से...
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है व्रत
हलषष्ठी का व्रत Hal shashthi Vrat 2023 भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि को रखा जाता है। भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसात कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि तो पांच सितंबर 2023 की शाम को 06 बजकर 50 मिनट पर लग जा रही है। यह तिथि छह सितंबर को रात आठ बजकर 55 मिनट तक है। चूंकि, व्रत के मामले में मान्यता चली आ रही है कि जिस तिथि में सूर्योदय होता है दिन उसी तिथि में माना जाता है। ऐसे में षष्ठी की उदया तिथि छह सितंबर को है। ऐसे में हलषष्ठी का व्रत छह सितंबर 2023 को रखा जाएगा।
व्रत में महुआ का है विशेष महत्व
हल षष्ठी व्रत Hal shashthi Vrat 2023 में महुआ का विशेष महत्व है। बिना इसके व्रत को पूरा नहीं माना जाता है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं इस दिन महुआ की लकड़ी को दातुन के रूप में प्रयोग करती हैं। महुआ को प्रसाद में भी शामिल किया जाता है। इस व्रत में जोते हुए खेत का अनाज, फल आदि खाने को निषिद्ध बताया गया है। भैंस का दूध, सूखा मेवा, तिन्नी का चावल और करमुआ का साग इस दिन महिलाओं में आहार में शामिल होता है।
क्षेत्र के अनुसार बदल जाता है व्रत का नाम
भारत को विविधताओं का देश यूं ही नहीं कहा जाता है। हमारे सांस्कृतिक सनातन परंपरा में पड़ने वाले विभिन्न त्योहार इसकी साफ झलक दिखलाते हैं। हलषष्ठी व्रत Hal shashthi Vrat 2023 को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। लेकिन व्रत के नियम कमोबेश सभी स्थानों पर एक ही जैसे हैं। उत्तर भारत इस व्रत के कई नाम हैं। बलराम जयंती, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, तिनछठी जैसे नामों से इस व्रत को रखा जाता है।
कुश पर गांठ देकर की जाती है पूजा
उत्तर प्रदेश के बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर आदि जिलों में इस दिन महिलाएं कुश पर गांठ देकर छठ मैया की पूजा करती हैं। यहां पर वह अपने बेटों को टीका लगाती हैं और इस पर्व से जुड़ी कहानियों को सुनती और सुनाती हैं। इसके उपरांत महुआ, तिन्नी के चावल और दही से बना प्रसाद वितरित किया जाता है। तमाम महिलाएं जमे हुए कुश पर गांठ देती हैं, जबकि अधिकांश महिलाएं जड़ समेत उखाड़ कर लाए गए कुश को कुएं के पास या मंदिर परिसर में दोबारा लगाकर उसकी पूजा करती हैं।
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हलषष्ठी व्रत की विधि
- हल षष्ठी व्रत में जोते हुए खेत में पैदा हुए अनाज का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- हल षष्ठी व्रत में तालाब या मैदान में पैदा होने वाले अनाज, साग आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें विशेष रूप से तिन्नी का चावल और करमुआ का साग शामिल है।
- हल षष्ठी व्रत में गाय के दूध, घी या दही का प्रयोग निषिद्ध है। इस व्रत में भैंस के दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है।
- इस दिन महिलाओं को पूरा दिन जोते हुए खेत में जाने से बचना होता है।
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