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Firaq Gorakhpuri: जयंती पर शेरो-शायरी से याद किए गए मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी

फिराक गोरखपुरी की शायरी युगों तक लोगों को दिशा देती रहेगी। उर्दू जबान और अदब की तारीख फिराक गोरखपुरी के बिना अधूरी है...

Firaq

बस्ती (यूपी)। Firaq Gorakhpuri Jayanti: मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी को 128वीं जयंती पर शेरो-शायरी के साथ याद किया गया। 28 अगस्त 2023 को बस्ती कलेक्ट्रेट परिसर में प्रेमचंद साहित्य एवं जनकल्याण संस्थान की ओर से आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने उनकी शायरी से जुड़े अनेक पहलुओं पर विस्तार से विमर्श किया।

युगों तक दिशा देती रहेगी फिराक गोरखपुरी की शायरी: डॉ. वीके वर्मा

मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. वीके वर्मा ने कहा कि फिराक गोरखपुरी की शायरी युगों तक लोगों को दिशा देती रहेगी। ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं’ तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’, ‘आई है कुछ न पूछ कयामत कहां कहां, उफ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहां कहां’ जैसी अनेक गजलों के रचयिता फिराक गोरखपुरी आज भी लोगों के जुबान पर हैं।

मीर, गालिब के बाद सबसे बड़े शायर थे फिराक: ओम प्रकाश

विशिष्ट अतिथि ओम प्रकाश पांडेय ने कहा कि मीर तकी मीर और मिर्जा गालिब के बाद हिंदुस्तान में उर्दू का सबसे महान शायर माना जाता है। उर्दू जबान और अदब की तारीख फिराक गोरखपुरी के बिना अधूरी है। आज भी उनकी शायरी को उसी शिद्दत से पढा, सुना और गुनगुनाया जाता है। उनकी शायरी में इन्सान के भीतर की संवेदनाएं मुखरित होती हैं।

आज भी मौजूं है फिराक की शायरी: श्याम प्रकाश

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि फिराक की शख्सियत में इतनी पर्तें, इतने आयाम, इतना विरोधाभास और इतनी जटिलता थी कि वो हमेशा से अध्येताओं के लिए एक पहेली बन कर रहे। तीन मार्च 1982 को भले ही फिराक साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी शायरी आज भी मौजूं है। फिराक गोरखपुरी की शायरी लोगों की जिंदगी के हर पहलू से जुड़ी है।

जानने वालों के लिए हमेशा पहेली रहे फिराक: डॉ. जगमग

संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि फिराक की शायरी के विविध आयाम हैं। और उनमें इतनी पर्तें थी, उनका व्यक्तित्व इतना जटिल और विरोधाभास से भरा था कि वह हमेशा से अपने जानने वालों के लिए एक पहेली बन कर रहे हैं। उर्दू भाषा के मशहूर रचनाकार फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था। उनका जन्म 28 अगस्त 1896 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। इन्हें अरबी, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत की शुरुआती तालीम अपने पिता से हासिल हुई। उनके पिता मुंशी गोरख प्रसाद ‘इबरत’ उस वक्त के प्रसिद्ध वकील और शायर थे। इसलिए शायरी तो फिराक को घुट्टी में ही मिली।

किसानों, गरीबों का भी दुखदर्द समझा: मतवाला

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सत्येंद्र नाथ मतवाला ने कहा कि फिराक की शुरुआती शायरी यदि देखें, तो उसमें जुदाई का दर्द, गम और जज्बात की तीव्रता शिद्दत से महसूस की जा सकती है। अपनी गजलों, नज्मों और रुबाइयों में वह इसका इजहार बार-बार करते हैं “वो सोज-ओ-दर्द मिट गए, वो जिंदगी बदल गई, सवाल-ए-इश्क है अभी ये क्या किया, ये क्या हुआ।’’ फिराक गोरखपुरी ने गुलाम मुल्क में किसानों-मजदूरों के दुःख-दर्द को समझा और अपनी शायरी में उनको आवाज दी। ऐसे महान शायर फिराक युगों तक याद किए जाएंगे।

जयंती कार्यक्रम में यह रहे मौजूद

कार्यक्रम में बीएन शुक्ल, बीके मिश्रा, राजेन्द्र सिंह राही, दीपक सिंह प्रेमी, विनय कुमार श्रीवास्तव आदि ने फिराक गोरखपुरी के शायरी पर विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्य रूप से राघवेन्द्र शुक्ल, कृष्णचन्द्र पांडेय, दीनबंधु उपाध्याय, सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, आशुतोष प्रताप, छोटेलाल वर्मा, पेशकार मिश्र, दीनानाथ यादव, आशुतोष प्रताप आदि ने फिराक गोरखपुरी को नमन करते हुए उनकी शायरी पर रोशनी डाली।

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