किशोरों और युवाओं को बीमार बना सकता है क्षमता से ज्यादा प्रतियोगी परीक्षाओं का दबाव
- 15-25 साल के उम्र में देखी जा रही गम्भीर मानसिक समस्या
- जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में मिल रही इलाज की सुविधा
बस्ती वार्ता। किशोरावस्था और युवाओं पर उनकी क्षमता से ज्यादा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों का दबाव उन्हें बीमार बना सकता है। 15-25 साल तक की अवस्था में ऐसे लोगों में गम्भीर मानसिक समस्या देखी जा रही है। जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में प्रतिदिन दो से तीन मरीज इस प्रकार के आ रहे हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. एके दूबे का कहना है कि बीमारी का के इलाज के साथ ही परिवार के लोगों की काउंसिलिंग कर समस्या का समाधान किया जा रहा है। समय पर इलाज शुरू होने पर मरीज जल्द ठीक होकर सामान्य जीवन जी रहे हैं।
पुरानी बस्ती क्षेत्र के दवा व्यापारी का कहना है कि उनकी बेटी को घबराहट होने, बेहोशी की हालत व सांस तेज चलने की समस्या थी। उसका ब्लड, और ऑक्सीजन लेवल सहित अन्य कई जांच कराई गयी, लेकिन सभी रिपोर्ट सही थी। लोगों की सलाह पर जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के मनोचिकित्सक डॉ. एके दूबे को दिखाया। दो माह तक चली उनकी दवा से बेटी ठीक है।
डॉ. एके दूबे ने बताया कि जब लड़की उनके पास आई तो सबसे पहले उन्होंने उसकी जांच रिपोर्ट देखी, जो नार्मल थी। इसके बाद लड़की की काउंसिलिंग शुरू की। लड़की ने बताया कि वह इंटरमीडिएट पास है और नीट की तैयारी कर रही है। परिवार के लोग उसे डॉक्टर बनाना चाहते हैं, जबकि वह उनकी अपेक्षा के अनुसार नीट के लिए पढ़ाई नहीं कर पा रही है। घर में जब कोई आता है तो परिवार के लोग उसे डॉक्टर बनाने की बात करते है, जिससे वह काफी मानसिक दबाव में आ जाती है। उसे यह सोच कर घबराहट होने लगती है कि अगर वह अपने घर वालों का सपना पूरा नहीं कर सकी तो क्या होगा। चैम्बर में ही लड़की की क्षमता का टेस्ट लिया तो वह पढ़ाई में काफी कमजोर दिखी। उसकी बीमारी की वजह समझ में आ गई।
डॉ. दूबे ने बताया कि परिवार के लोगों को बुलाकर उन्हें बेटी की समस्या बताई गयी और उनसे कहा कि वह पढ़ाई बेटी की क्षमता व उसके विवेक पर छोड़ दें, परिवार के लोग समझ गए। कुछ दिनों बाद मरीज की हालत ठीक होने लगी, अब वह पूरी तरह ठीक है।
शहर के आवास विकास कॉलोनी का एक 20 वर्षीय युवक डॉ. एके दूबे के पास आया और उसने बताया कि उसका मन किसी काम में नहीं लगता है, चिड़चिड़ापन रहता है तथा पढ़ाई के प्रति दिमाग एकाग्र नहीं हो पाता है। दोस्तों के बीच जाने से उसे घबराहट होती है। डॉ. दूबे ने बताया कि युवक की जब काउंसिलिंग की गई तो मालूम हुआ कि उसने समय से पहले काफी कुछ पाने की महत्वाकांक्षा दिमाग में पाल रखी थी। दोस्तों का रहन-सहन देख कर भी वह प्रभावित हो रहा था। वह इसके बारे में सोंचा करता था, जिसका असर उसके दिमाग पर पड़ रहा था। नियमित काउंसिलिंग से अब वह काफी हद तक ठीक हो चुका है, और कम्प्टीशन की तैयारी कर रहा है।
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परिवार के लोग खुद न करें क्षमता का आंकलन
डॉ. एके दूबे ने बताया कि परिवार के लोग बच्चों की पढ़ाई की क्षमता का आंकलन कदापि खुद न करें तथा उनके ऊपर पढ़ाई के लिए किसी प्रकार का दबाव न बनाएं। सबसे बेहतर है कि बच्चों को खुद तय करने दें, कि वह किस क्षेत्र में जाना जाता है, तथा उसे कौन सा विषय पसंद है। इसमें परिवार के लोग बच्चों के शिक्षक की मदद ले सकते हैं।
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7200 मानसिक रोगियों का हुआ इलाज
जिला अस्पताल में संचालित मानसिक क्लीनिक में अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के बीच में लगभग 7200 रोगियों का इलाज किया गया। हर माह लगभग 300 नए व 300 पुराने मरीज जिला अस्पताल आ रहे हैं। डॉ. एके दूबे ने बताया कि इसमें 90 प्रतिशत लोगों को दवा से आराम है। दवा बीच में छोड़ने वालों की समस्या गम्भीर हो जाती है।
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