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रतन टाटा || Ratan Tata || सफलता की बुलंदियों तक के सफर का हर एक क्षण बन गया देशवासियों के लिए प्रेरक प्रसंग |
Ratan Tata || आज का दिन यानी 10 अक्टूबर 2024। रतन टाटा को याद करने का दिन है। 28 दिसम्बर 1937 को जन्मे रतन टाटा का 9 अक्टूबर 2024 को निधन हो गया। रतन टाटा देश के उन जाने-माने उद्योगपतियों में शामिल रहे हैं, जिन्हें देश तो क्या दुनिया भर में आने वाले सैकड़ों हजारों साल तक पहचाना जाता रहेगा। रतन टाटा की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि बृहस्पतिवार को जब उनका पार्थिव शरीर मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित एनटीपीए में रखा गया, तो बड़ी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन को उमड़ पड़े। उनमें ऐसे लोग भी थे, जो कभी रतन टाटा से न मिले थे, न ही उनकी कंपनियों में काम किया था।
रतन टाटा नैतिकता, मानवीयता की उच्चतम पराकाष्ठाओं तक पहुंचने वाले इंसान हैं। उनकी सोच, उनके विजन और देश के नागरिक के तौर पर देश से उनके जुड़ाव को बयां करने के लिए चाहे जितने शब्द जोड़ लिए जाएं। लेकिन, उसे शब्दों से साकार नहीं किया जा सकता। रतन टाटा भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन वह लोगों के दिलों और दिमाग में तब तक जिंदा रहेंगे। जब तक इस धरती पर कारोबार का सिलसिला चलता रहेगा। रतन टाटा के बारे में आज तमाम किस्से सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर तैर रहे हैं। जो यह साबित करते हैं कि रतन टाटा एक श्रेष्ठतम नागरिक की तरह लोगों का और देश का कितना ख्याल रखते थे।
टाटा नैनो कार उनके इसी विजन की देन थी। बताते हैं कि मुंबई की सड़कों पर सफर के दौरान बारिश में स्कूटर पर सवार एक परिवार को देखकर उनके मन में टाटा नैनो का ख्याल आया। उन्होंने 100000 रुपये कीमत में कार बनाने का फैसला लिया। टाटा नैनो कार दुनिया की सबसे चर्चित कारों और सबसे सस्ती कारों में शुमार है। भले ही आज इसका उत्पादन बंद कर दिया गया हो, लेकिन टाटा नैनो कार का नाम भी रतन टाटा की ही तरह सब की जुबान पर है।
टाटा ग्रुप आज 30 अलग-अलग क्षेत्र में 100 से अधिक देशों में कारोबार करती है। यह देश के उन चुनिंदा व्यापारिक घरानों में शुमार है, जिसने आजादी से पहले देश के निर्माण के विजन को लेकर व्यापार किया। रतन टाटा की सादगी भी आज सबके जुबान पर है। कहते हैं कि ताज होटल के मालिक रतन टाटा मुंबई में एक छोटे से फ्लैट में रहा करते थे। यह उनकी सादगी की ही तो एक पहचान है। वह अपने फाइव स्टार होटल में ठहरने के बजाए गेस्ट हाउस में रहना पसंद करते थे।
वह अपने कर्मचारियों के घर ऐसे ही पहुंच जाते थे, जैसे कोई उनके बीच का ही शख्स हो। रतन टाटा को देखकर कभी इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि वह इतनी अकूत धन दौलत के मालिक हैं। वह अपने आप को सबसे पहले देश का नागरिक मानते थे और इसीलिए देश के विकास और आर्थिक सुदृढ़ीकरण की दिशा में अपने जीवन का हर एक क्षण गुजारते चले गए।
वह 86 साल की भी उम्र में थके नहीं थे। यह तो ईश्वर के दिए शरीर का एक पहलू है कि उम्र के साथ हर किसी को इस धरती को छोड़ना ही पड़ता है। इसी तरह रतन टाटा भी आज अपने शरीर को छोड़कर अनंत में विलीन हो गए। लेकिन रतन टाटा की कहानी किस्से देश के प्रति उनका समर्पण, लोगों के प्रति उनका लगाव, व्यापार के प्रति नैतिकता अनंत काल तक लोगों के जुबान पर रहेगी।
हम बचपन से ही टाटा की कहानी और उनके उत्पादों का जिक्र सुनते आए हैं। हमारे दिन की शुरुआत से लेकर रात के सोने तक शायद ही ऐसा हो कि हम टाटा के बने किसी उत्पाद से रूबरू ना होते हों। वह चाय से लेकर बिजली तक शामिल है। टाटा देश के उन व्यापारिक घरानों में से भी एक है, जिसने देश को एक नई पहचान दी। देश के लिए ही वह जीते थे।
कहा जाता है कि ताज होटल के निर्माण के पीछे भी एक कहानी है। जमशेदजी टाटा जब मुंबई में एक होटल में रात के डिनर के लिए गए। तो उन्हें वहां प्रवेश नहीं दिया गया। कहा गया कि इसमें यूरोप के लोगों को ही प्रवेश दिया जाता है। उसी शाम जमशेदजी टाटा ने एक ऐसा होटल बनाने की ठान ली। जो देश की पहचान हो। जिसका नतीजा यह रहा कि देश को ताज होटल मिला। आज ताज होटल की पहचान पूरी दुनिया में है।
रतन टाटा को विदाई देते समय आज लाखों लोगों की आंखें नम थीं। उनके समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रतन टाटा ने एक बार कहा था कि उनके मरने पर उनकी कंपनियों में काम बंद नहीं होना चाहिए। यह देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। रतन टाटा पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित भी हो चुके हैं।
रतन टाटा को याद करते हुए ऐसा लगता है कि आज हमारे बीच का कोई शख्स आज हमारे पास नहीं है। रतन टाटा को अलविदा कहते हुए मन भारी सा हो रहा है। फिर भी प्रकृति की यह देन है और कालचक्र भी यही है कि जो इस धरती पर आया है उसे एक दिन जाना है। तो रतन टाटा आपको ससम्मान अलविदा... लेकिन आप देशवासियों के मन में अनंत काल तक जिंदा रहेंगे।
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