- ब्रितानिया हुकूमत के बर्बरता की दास्तान सुनाती हैं अमर शहीद राजा उदय प्रताप के किले की दीवारें
बस्ती। मंडल मुख्यालय से महज सात किमी बस्ती-आंबेडकरनर मार्ग स्थित नगर के राजा उदय प्रताप नारायण सिंह (King uday pratap narayan Singh) से अंग्रेजी हुकूमत (British empire) भी थर्राती थी। कारण यह था कि राजा गुरिल्ला वार (guerrilla war) में बहुत ही मंझे हुए योद्धा थे और उनके चुनिंदा साथियों ने ब्रितानिया हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं। यही कारण है कि ऐतिहासिक राजा नगर का नाम आज भी फख्र से लिया जाता है।
नगर राज्य के राजा उदय प्रताप नरायण सिंह ने 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (First War of Independence) के दौरान अपने बहनोई अमोढ़ा नरेश राजा जालिम सिंह के साथ मिलकर सरयू नदी के तट पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया। फैजाबाद (अब अयोध्या) की तरफ से गोरखपुर की तरफ बढ़ रही अंग्रेज सैनिकों की नाव पर धावा बोल दिया।
सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। पुरातत्ववेत्ता व एसआर पीजी कॉलेज दसिया-रुधौली के प्राचार्य डॉ. वीरेंद्र श्रीवास्तव की पुस्तक 'स्वतंत्रता संग्राम' (Freedom Struggle) में बस्ती मंडल का योगदान' के अनुसार इन्हीं में से किसी तरह एक अंग्रेज सैनिक अपनी जान बचाकर गोरखपुर पहुंचा। 29 अप्रैल 1857 को कर्नल राक्राप्ट के नेतृत्व में नगर किले पर आक्रमण कर दिया।
अंग्रेजी सेना ने किले से एक किलोमीटर दूर एक गांव के पास अपना डेरा डाला और किले को बारूद व तोपों से ध्वस्त कर दिया। राजा नगर तो अंग्रेजों के कब्जे में आ गए, लेकिन सुरंग के जरिए गर्भवती रानी अठदमा गांव में अपने एक कारिंदे के घर छिप गईं। जिनके वंशज आज भी पोखरनी में निवास करते हैं। दूसरी तरफ राजा उदय प्रताप को गिरफ्तार कर गोरखपुर में केस चलाया गया और अंग्रेज अधिकारियों के हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुना दी गई।
अंग्रेजों ने उन्हें अपमानित करके फांसी देने की योजना बनाई तो इसकी भनक राजा को हो गई। उन्होंने अंग्रेजों के हाथ अपमानित होकर मरना स्वीकार नहीं किया और धोखे से पहरेदार के रायफल की संगीन अपने सीने में उतार कर मौत को गले लगा लिया। राजा के किले के ध्वंसावशेष आज भी नगर में मौजूद हैं। जिन पर आज भी देशप्रेमी शीष नवाते हैं।
अपने पूर्वज पर हमें है गर्व
राजा उदय प्रताप सिंह के वंशज आज भी पोखरनी गांव में रहते हैं। उनके उत्तराधिकारी लाल वीरेंद्र प्रताप सिंह, उनके पुत्र लाल राघवेंद्र प्रताप सिंह व पौत्र लाल आर्नेश प्रताप सिंह बताते हैं कि हमें अपने पूर्वज पर गर्व की अनुभूति होती है और अभी भी उनसे जुड़ी सामग्री बतौर निशानी व धरोहर के रूप में रखी गई है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी उनके त्याग व बलिदान को याद कर सकें।
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