उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के रहने वाले कवि व लेखक डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पहचान हिंदी जगत में ध्रुव तारे की तरह है। उनकी कालजयी रचनाओं के माध्यम से साहित्य प्रेमियों ने उन्हें याद किया...
बस्ती (यूपी)। प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से संगठन की सदस्य अर्चना श्रीवास्तव के मड़वानगर स्थित आवास पर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के जयंती अवसर पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्ष विनोद कुमार उपाध्याय ने की। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. रघुवंशमणि ने कहा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने बस्ती को राष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान दी है।
डॉ. रघुवंश मणि ने कहा कि उनकी रचनाओं में सादगी और प्रतिरोध दोनों मिलते हैं। बस्ती के पिकौरा बक्श में जन्मे सर्वेश्वर दयाल जी का अधिकांश जीवन दिल्ली में बीता, लेकिन उनकी रचनाओं में बस्ती का संदर्भ जरूर मिलता है। अर्चना श्रीवास्तव की सरस्वती वंदना से शुरू हुआ कार्यक्रम देर तक जारी रहा। डॉ. अजीत कुमार श्रीवास्तव ने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचना ‘जूता’ से कुछ लाइन प्रस्तुत की, बाद में ‘कुछ करिश्मा हमें भी दिखाना पड़ा, एक सूरज नया फिर उगाना पड़ा’ सुनाकर कार्यक्रम को दिशा दी।
दीपक सिंह प्रेमी ने ‘रखा है अष्टमी का व्रत किसी ने, मेरा दिल रामदाना हो गया’, अफजल हुसैन अफजल ने ‘गीत में किर्तन भजन या नात हो, देश में अम्नो अमन की बात हो’, सागर गोरखपुर ने ‘जुनूने इश्क में एक बेवफा से दिल से दिल लगा बैठे’ विनोद उपाध्याय ने ‘वो अचानक याद आया देर तक, और फिर उसने रुलाया देर तक’ सुनाकर कार्यक्रम को रोचक बना दिया। रहमाल अली रहमान ने भी कबीर परंपरा से जुड़ी प्रस्तुति कर गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की।
कार्यक्रम में अजय गोपाल श्रीवास्तव, अभिरूप श्रीवास्तव, विशाल पांडेय, राजेंद्र सिंह राही, हरिकेश प्रजापति, श्याम प्रकाश शर्मा, जगदंबा प्रसाद भावुक, आदि मौजूद रहे।
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