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पिता राजगीर, माता मनरेगा श्रमिक और बेटा बन गया ISRO में वैज्ञानिक सहायक, प्रेरक है संघर्ष का सफर

पिता राजगीर, माता मनरेगा श्रमिक और बेटा बन गया ISRO में वैज्ञानिक सहायक, प्रेरक है संघर्ष का सफर

बस्ती (यूपी)। कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। कवि दुष्यंत कुमार के इस शेर को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के दुबौलिया विकास खंड के भकरही गांव निवासी बौद्धमणि गौतम में एक बार फिर से प्रासंगिक बना दिया है। बौद्धमणि गौतम के पिता राजगीर मिस्त्री हैं और माता मनरेगा में श्रमिक। जाहिर है उनके पास पढ़ाई के संसाधन सीमित रहे होंगे, लेकिन अपनी मेहनत और लगन से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) वैज्ञानिक सहायक के पद पर चयनित हुए हैं।

तीस से अधिक प्रतियोगी परीक्षाओं के बाद मिली सफलता

पूर्वांचल संदेश यूट्यूब चैनल को दिए साक्षात्कार में बौद्धमणि गौतम ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को दिया है। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं का मार्गदर्शन भी किया है। वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार चौधरी के सवालों का जवाब देते हुए बौद्धमणि गौतम ने बताया कि उनकी कक्षा छह से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा श्रीराम सुमेर सिंह कृषक इंटर कालेज पिपरा बृजलाल से हुई। हाई स्कूल वर्ष 2012 में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किए।‌ वर्ष 2012 में ही पॉलिटेक्निक में चयन हो गया। गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक गाजियाबाद से पॉलिटेक्निक पूरा करने के बाद राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज बांदा से बीटेक किया। वर्ष 2018 में बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद से वह अब तक करीब 30 प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठे, लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन, हाल में जब उनका चयन इसरो (ISRO) में वैज्ञानिक सहायक के पद पर हुआ तो लगा कि उनके साथ-साथ माता-पिता के संघर्ष का फल मिल गया है।

सफलता के लिए कड़ी मेहनत के अलावा कोई विकल्प नहीं

बौद्धमणि गौतम बेबाकी से कहते हैं कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। बताते हैं कि जब वह हाई स्कूल में थे तब वह पढ़ाई में काफी पीछे थे। गांव का माहौल था। घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। तब मन में आया कि किसी तरह से हाई स्कूल पास हो जाएं। तब पढ़ाई का टाइम टेबल बनाया। बिजली के आने-जाने का कोई समय नहीं रहता था तो केरोसिन से जलने वाले लैम्प से पढ़ाई की और 86.67 प्रतिशत अंक हासिल किया। तभी इस बात का अहसास हुआ कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसी बीच पॉलिटेक्निक में चयन हो गया। इसके बाद बीटेक और इसरो (ISRO) में वैज्ञानिक सहायक पद पर चयन ने कड़ी मेहनत का प्रतिफल दिया। इसमें जितना उनकी मेहनत का योगदान है, उससे कई गुना आशीर्वाद उनके माता-पिता के संघर्ष और मार्गदर्शन का है। 

सरयू-मनवर के दोआबा में बौद्धमणि का गांव

सरयू और मनवर के दोआबा के पिछड़े इलाके में स्थित भकरही निवासी राधेश्याम के बड़े पुत्र बौद्ध मणि गौतम के इसरो में सहायक वैज्ञानिक के पद पर चयन होने से परिवार के साथ पूरे गांव में खुशी का माहौल है। बताते हैं कि बीटेक के बाद लखनऊ में ही रह कर तैयारी कर रहे थे। वर्ष 2019 में इसरो में सहायक वैज्ञानिक पद के लिए फार्म भरा। जिसके आधार पर पिछले माह वैज्ञानिक सहायक पद पर बंगलुरू में चयन हुआ।‌ इसरो में वैज्ञानिक पद पर चयन होने से मां कमलेश देवी भाई राजमणि गौतम छोटी बहन बेबी गौतम फूले नहीं समा रहे हैं।

मां मनरेगा श्रमिक तो पिता हैं राजगीर मिस्त्री

बौद्धमणि कहते हैं कि मेरी मां मनरेगा में मजदूरी कर पाई पाई का इंतजाम किया। तो वहीं पिता राजगीर मिस्त्री का काम करते हैं। बीटेक के दौरान खर्चा अधिक पड़ने पर पिता किसी तरह कर्ज लेकर दुबई गए और पढ़ाई का खर्चा उठाया। इसरो में वैज्ञानिक पद के लिए तीन बार फ़ार्म भरा, लेकिन परीक्षा आफलाइन होने के कारण तमिलनाडु सेंटर बना। लेकिन, किराया भाड़े की व्यवस्था नहीं हो पाने पर परीक्षा नहीं दे पाए। इस बार सेंटर लखनऊ में था।‌ जहां जाकर परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में सफल रहे। शिक्षक राजकुमार और रामचंद्र द्वारा हमेशा ही मुझे प्रेरित कर उत्साहवर्धक किया है। बौद्ध मणि गौतम बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को अपना आदर्श मानते हैं।‌ वहीं, क्षेत्र के गांव के बलवंत प्रताप सिंह, डॉ. जेपी आर्या, डॉ. रजवंत प्रताप सिंह, राजेश सिंह एवं विद्यालय के सभी शिक्षकों ने खुशी जाहिर की है।

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